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थाईलैंड: वरिष्ठ नेता अनुतिन को संसद में बहुमत, प्रधानमंत्री बनने का रास्ता हुआ साफ

थाईलैंड: अनुतिन चार्नविराकुल को संसद में बहुमत, प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ

बैंकॉक: थाईलैंड की राजनीति में बड़ा मोड़ आया है। भुमजैथाई पार्टी के नेता और वरिष्ठ राजनेता अनुतिन चार्नविराकुल के लिए प्रधानमंत्री बनने का रास्ता लगभग साफ हो गया है। शुक्रवार को प्रतिनिधि सभा में हुए मतदान में उन्हें बहुमत का समर्थन मिला, जिससे उनके नेतृत्व वाली सरकार के गठन की संभावना प्रबल हो गई है।

टीवी पर प्रसारित मतगणना के मुताबिक, 492 सदस्यीय संसद में अनुतिन को 247 से अधिक वोट मिले हैं — जो प्रधानमंत्री बनने के लिए आवश्यक संख्या है। आधिकारिक पुष्टि मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद की जाएगी। अगले कुछ दिनों में उन्हें और उनकी सरकार को राजा महा वजिरालोंगकोर्न से औपचारिक नियुक्ति प्राप्त होगी, जिसके बाद वे पदभार ग्रहण करेंगे।


नए प्रधानमंत्री की राह कैसे बनी आसान?

अनुतिन के पक्ष में न सिर्फ उनकी भुमजैथाई पार्टी के 289 सांसद हैं, बल्कि पीपुल्स पार्टी के 143 सांसदों ने भी उन्हें समर्थन देने का ऐलान किया था। यह समर्थन उनकी बहुमत की संख्या तक पहुँचने में निर्णायक साबित हुआ।


पिछले प्रधानमंत्रियों का पतन:

इससे पहले देश की प्रधानमंत्री रहीं पैतोंगटार्न शिनावात्रा को थाईलैंड की सांविधानिक अदालत ने उनके पद से हटा दिया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने कंबोडिया के सीनेट अध्यक्ष हुन सेन से सीमा विवाद के दौरान फोन पर बात की थी, जिसे राजनीतिक नैतिकता का उल्लंघन माना गया। इससे पहले भी प्रधानमंत्री स्रेत्ता थाविसिन को नैतिकता के उल्लंघन के आरोप में पद से हटाया जा चुका है।


फ्यू थाई पार्टी की रणनीति और असफलताएं:

  • फ्यू थाई पार्टी, जिसने हाल ही में अंतरिम सरकार चलाई, ने संसद भंग करने की कोशिश की थी, लेकिन राजा के सलाहकारों की समिति ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
  • इसके बाद पार्टी ने पूर्व अटॉर्नी जनरल चायकासेम नीतिसीरी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। उन्होंने घोषणा की कि यदि चुने गए, तो वह संसद भंग कर जल्द चुनाव कराएंगे।

पीपुल्स पार्टी की भूमिका और शर्तें:

हालांकि, पीपुल्स पार्टी (पूर्व में मूव फॉरवर्ड पार्टी) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह सरकार में शामिल नहीं होगी और विपक्ष में बैठेगी। पार्टी ने यह भी शर्त रखी है कि अनुतिन सरकार बनने पर संविधान में बदलाव के लिए जनमत संग्रह कराए और संविधान सभा का गठन करे।


अनुतिन कौन हैं?

अनुतिन थाई राजनीति में एक प्रभावशाली चेहरा रहे हैं:

  • पूर्व में वे फ्यू थाई गठबंधन सरकार और सेना समर्थित सरकार दोनों का हिस्सा रहे हैं।
  • वे गांजा को अपराध की श्रेणी से बाहर करवाने के लिए भी खासे चर्चित हैं।
  • कोरोना महामारी के समय वे स्वास्थ्य मंत्री थे, हालांकि वैक्सीन आपूर्ति को लेकर उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।

भूमजैथाई पार्टी की योजना:

भूमजैथाई पार्टी का कहना है कि अनुतिन के प्रधानमंत्री बनने के बाद चार महीनों के भीतर संसद भंग कर चुनाव कराए जाएंगे। यह कदम उन्होंने पीपुल्स पार्टी से समर्थन पाने के बदले उठाने का वादा किया था।


संविधान में बदलाव और राजशाही का दबाव:

2023 के चुनाव में पीपुल्स पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन उन्हें सीनेट और सेना समर्थित तंत्र के चलते सत्ता में आने से रोक दिया गया। अब सीनेट को प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार नहीं है, लेकिन उसके अतीत के फैसलों ने थाईलैंड की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।


निष्कर्ष:

अनुतिन चार्नविराकुल की ताजपोशी अब औपचारिकता भर है। राजनीतिक अस्थिरता, नैतिकता विवादों और गठबंधन टूटने के दौर के बाद थाईलैंड अब एक नए नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है। अब देखना होगा कि अनुतिन सरकार जन अपेक्षाओं, संवैधानिक सुधारों और स्थिरता के बीच कैसे संतुलन बनाती है।

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Pope Francis Passes Away: पोप फ्रांसिस का निधन, 88 साल की उम्र में ली आखिरी सांस; डबल निमोनिया से जूझ रहे थे

पोप फ्रांसिस का निधन: वेटिकन ने दी पुष्टि, 88 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
वेटिकन ने सोमवार को एक आधिकारिक बयान जारी कर पोप फ्रांसिस के निधन की पुष्टि की। वह रोमन कैथोलिक चर्च के पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे और दोनों फेफड़ों में डबल निमोनिया से पीड़ित थे। वह लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे और अस्पताल में भर्ती थे। कार्डिनल केविन फेरेल ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि पोप फ्रांसिस का पूरा जीवन ईश्वर और मानवता की सेवा में समर्पित रहा।

पोप ने सोमवार, 21 अप्रैल 2025 को वेटिकन स्थित अपने निवास ‘कासा सांता मार्टा’ में स्थानीय समयानुसार सुबह 7:30 बजे अंतिम सांस ली। वेटिकन न्यूज के अनुसार, लंबे समय से उनकी तबीयत खराब चल रही थी। हाल ही में ईस्टर के अवसर पर वे एक लंबे अंतराल के बाद सार्वजनिक रूप से दिखाई दिए थे।

पोप फ्रांसिस पहले जेसुइट ऑर्डर से आने वाले पोप थे और 8वीं शताब्दी के बाद पहले गैर-यूरोपीय पोप बने। अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में जन्मे, उनका असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। 1969 में उन्हें कैथोलिक पादरी के रूप में नियुक्त किया गया। पोप बेनेडिक्ट XVI के इस्तीफे के बाद, 13 मार्च 2013 को उन्हें नए पोप के रूप में चुना गया और उन्होंने ‘सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी’ के सम्मान में ‘फ्रांसिस’ नाम अपनाया।

उनके निधन के बाद वेटिकन में 14 दिन की शोक अवधि घोषित की गई है, जिसके बाद कार्डिनल नए पोप के चुनाव के लिए सम्मेलन करेंगे।

भारत यात्रा की योजना
पोप फ्रांसिस के भारत दौरे की चर्चा भी थी। केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन ने पिछले दिसंबर में जानकारी दी थी कि पोप 2025 के बाद भारत आ सकते हैं, जिसे कैथोलिक चर्च ने जुबली वर्ष घोषित किया है। भारत ने उन्हें औपचारिक आमंत्रण दिया था, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें आमंत्रित किया था। यात्रा की योजना पोप की सेहत और सुविधा के अनुसार बननी थी।

पोप फ्रांसिस का अंतिम संदेश
अपने अंतिम सार्वजनिक संदेश में पोप ने लोगों से ज़रूरतमंदों की सहायता करने, भूख मिटाने और विकास को प्रोत्साहित करने वाली पहलों को बढ़ावा देने की अपील की थी। ईस्टर संदेश में उन्होंने लिखा:
“मैं दुनिया भर के राजनैतिक नेताओं से अपील करता हूं कि वे भय से पराजित न हों। डर हमें एक-दूसरे से अलग करता है। हमारे पास जो संसाधन हैं, उनका उपयोग करें—भूख के खिलाफ लड़ाई, ज़रूरतमंदों की मदद और विकास के प्रयासों के लिए। यही सच्चे शांति के हथियार हैं, जो मृत्यु नहीं, बल्कि भविष्य का निर्माण करते हैं। मानवता का सिद्धांत हमारे हर कार्य में झलकना चाहिए।”

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क्या है HMPV वायरस, जिसे छिपा रहा चीन: और किन देशों में फैल चुका है, टीका-उपचार क्या, कितना खतरनाक? जानें

चीन में एक बार फिर कोरोनावायरस के जैसा ही एक और वायरस खतरा बनता दिख रहा है। हाल ही के दिनों में चीन से जो वायरल वीडियो सामने आए हैं, उनमें अस्पतालों के बाहर जबरदस्त भीड़ लगे देखा जा सकता है। इससे जुड़ी रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन में इस वक्त संक्रमण फैलने की असल वजह ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) है। एक रिपोर्ट में हॉन्गकॉन्ग के अखबार हॉन्गकॉन्ग एफपी ने दावा किया है कि चीन में यह वायरस तेजी से फैला है और लोगों में बड़े स्तर पर सांस से जुड़ी समस्याएं दर्ज की जा रही हैं। हालांकि, फिलहाल हॉन्गकॉन्ग में इस वायरस से जुड़े मामले कम हैं। 

इतना ही नहीं चीन में एचएमपीवी के अलावा कुछ और वायरस के भी फैलने की खबरें हैं। इनमें इन्फ्लुएंजा ए, माइकोप्लासमा न्यूमोनिए और कोरोनावायरस के दोबारा फैलने से जुड़े दावे शामिल हैं। इसके अलावा कुछ अपुष्ट दावे हैं कि चीन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए आपातकाल लगा दिया है। खासकर एचएमपीवी वायरस, जिसके लक्षण कोरोनावायरस संक्रमण के जैसे ही हैं को लेकर स्वास्थ्य अधिकारियों ने निगरानी बढ़ा दी है। 

एचएमपीवी का किस पर और कितना असर?

  • यह मुख्य तौर पर बच्चों पर असर डालता है। हालांकि, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और बुजुर्गों पर भी इसका प्रभाव दर्ज किया गया है। 
  • इस वायरस की वजह से लोगों को सर्दी, खांसी, बुखार, कफ की शिकायत हो सकती है। ज्यादा गंभीर मामलों में गला और श्वांस नली के जाम होने से लोगों के मुंह से सीटी जैसी खरखराहट भी सुनी जा सकती है।
  • कुछ और गंभीर स्थिति में इस वायरस की वजह से लोगों को ब्रोंकियोलाइटिस (फेफड़ों में ऑक्सीजन ले जाने वाली नली में सूजन) और निमोनिया (फेफड़ों में पानी भरना) की स्थिति पैदा कर सकता है। इसके चलते संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ सकती है। 
  • चूंकि इसके लक्षण कोरोनावायरस संक्रमण और आम फ्लू से मिलते-जुलते हैं, इसलिए इन दोनों में अंतर बता पाना मुश्किल है। हालांकि, जहां कोरोनावायरस की महामारी हर सीजन में फैली थी। वहीं एचएमपीवी अब तक मुख्यतः मौसमी संक्रमण ही माना जा रहा है। हालांकि, कई जगहों पर इसकी मौजूदगी पूरे साल भी दर्ज की गई है।
  • कोरोना के इतर इस वायरस के कारण ऊपरी और निचले दोनों श्वसन पथ में संक्रमण का खतरा हो सकता है।
  • सामान्य मामलों में इस वायरस का असर तीन से पांच दिन तक रहता है। 

वैक्सीन और उपचार के क्या तरीके हैं?
मौजूदा समय में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस से बचाव के लिए कोई टीका (वैक्सीन) मौजूद नहीं है। इसके अलावा एंटी वायरल दवाइयों का प्रयोग इस पर असर नहीं डालता। ऐसे में एंटी वायरल का प्रयोग इंसानों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम कर सकता है। 
इस वायरस से जूझ रहे लोगों को लक्षण हल्का करने के लिए कुछ दवाएं दी जा सकती हैं। हालांकि, वायरस को खत्म करने लायक उपचार अभी मौजूद नहीं है। 

दुनिया के किन देशों में दिख चुका है इसका असर?
2023 में एचएमपीवी के कई मामले नीदरलैंड, ब्रिटेन, फिनलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और चीन में दर्ज किए गए हैं। बीजिंग की कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी के यू’आन अस्पताल में श्वसन और संक्रामक रोग विभाग के मुख्य चिकित्सक ली तोंगजेंग के मुताबिक, मास्क पहनने, हाथों को लगातार धोने और प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने से बीमारी से राहत मिल सकती है।

वायरस ने चीन पर क्या असर डाला है?
वहीं इस मामले में चीन के रोग नियंत्रण प्राधिकरण ने शुक्रवार को बताया कि उसने अज्ञात कारणों से होने वाले निमोनिया के मामलों पर नजर रखने के लिए एक खास निगरानी प्रणाली शुरू की है। बयान में बताया गया कि सर्दियों के मौसम में श्वसन रोगों (सांस से जुड़ी बीमारियों) के मामलों में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। इस नई प्रणाली का उद्देश्य अधिकारियों को उन बीमारियों से निपटने में मदद करना है, जिनके कारण अभी तक समझ में नहीं आए हैं।  

कोरोनावायरस के मामलों के आने के बाद जहां चीन की अधिकतर व्यवस्थाएं चरमरा गई थीं, वहीं अब इस वायरस के लिए चीनी सरकार ने प्रोटोकॉल तय करने का फैसला किया है। इसके लिए कई प्रयोगशालाओं में नियमों को स्थापित किया जाना है, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियों को रिपोर्ट करने के साथ इनके नियंत्रण और बचाव के तरीकों पर भी काम किया जाएगा। 

भारत ने क्या कहा?
इस बीच राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) चीन में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) के प्रकोप की हालिया खबरों को देखते हुए देश में श्वसन और मौसमी इन्फ्लुएंजा के मामलों पर करीबी नजर रखे हुए है और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के संपर्क में है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हम स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए हैं और विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।”

स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) डॉ. अतुल गोयल ने कहा कि ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस सांस से संबंधित किसी भी अन्य वायरस की तरह है, जो सामान्य जुकाम का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि यह युवाओं और अधिक आयु के लोगों में फ्लू जैसे लक्षण पैदा कर सकता है।

उन्होंने कहा, “चीन में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) के प्रकोप के बारे में खबरें आई हैं। हालांकि, हमने देश (भारत) में श्वसन प्रकोप के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। दिसंबर 2024 के आंकड़ों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। हमारे किसी भी स्वास्थ्य संस्थान से बड़ी संख्या में मामले सामने नहीं आए हैं। मौजूदा स्थिति को लेकर घबराने की कोई बात नहीं है।”

डॉ. गोयल ने कहा, “किसी भी स्थिति में, सर्दी के दौरान श्वसन संक्रमण का प्रकोप बढ़ जाता है, जिसके लिए आमतौर पर हमारे अस्पतालों में आवश्यक चीजों की आपूर्ति और बिस्तरों की व्यवस्था की जाती है।” उन्होंने लोगों को श्वसन संक्रमण को रोकने के लिए अपनाई जाने वाली सामान्य सावधानियां बरतने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि यदि किसी को खांसी और जुकाम है तो उन्हें दूसरों के संपर्क में आने से बचना चाहिए ताकि संक्रमण न फैले।



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यूक्रेन पर रूस ने गिराईं खतरनाक ICBM मिसाइलें, जंग में पहली बार इस हथियार का इस्तेमाल

मॉस्को: रूस-यूक्रेन युद्ध एक बार फिर खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। अब इस युद्ध में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल की एंट्री हो चुकी है। पहली बार रूस ने इस युद्ध में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का उपयोग किया है, जिसे अत्यधिक खतरनाक माना जाता है।

यह मिसाइल हजारों मील की दूरी तय करके अपने लक्ष्य को सटीकता से भेदने में सक्षम है। रिपोर्ट के अनुसार, हमले में कई प्रकार की मिसाइलें शामिल थीं। रूस के अस्त्रखान क्षेत्र से एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की गई, जबकि ताम्बोव क्षेत्र में मिग-31K फाइटर जेट से भी एक मिसाइल दागी गई।

‘मिसाइल में नहीं था परमाणु चार्ज’
वायु सेना के एक सूत्र ने एएफपी को बताया कि रूस द्वारा गुरुवार को यूक्रेन पर दागी गई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल में परमाणु चार्ज नहीं था। यूक्रेनी वायु सेना के एक सूत्र ने भी पुष्टि की कि जिस हथियार का पहली बार यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल हुआ, उसमें कोई परमाणु हथियार नहीं था।

इस बीच, रूसी सेना ने दावा किया कि उन्होंने ब्रिटेन निर्मित दो स्टॉर्म शैडो मिसाइलों को मार गिराया है। हालांकि, सेना ने यह स्पष्ट नहीं किया कि ये मिसाइलें कब और कहां दागी गई थीं।

यूक्रेन की वायु सेना ने जानकारी दी कि विमान-रोधी मिसाइल इकाइयों ने 6 Kh-101 मिसाइलों को नष्ट कर दिया। हालांकि, अब तक किसी नागरिक के घायल होने की सूचना नहीं है।

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Ukraine: रूस-यूक्रेन युद्ध बढ़ने का खतरा, अमेरिका ने कीव में अपना दूतावास किया बंद, हवाई हमले का डर

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका ने कीव में स्थित अपने दूतावास को बंद करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही, दूतावास के कर्मचारियों को सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने की सलाह दी गई है। अमेरिका को आशंका है कि उनके दूतावास पर हवाई हमले हो सकते हैं। इस बारे में अमेरिकी विदेश विभाग ने एक बयान जारी किया है।

अमेरिका की यूक्रेन को लंबी दूरी की मिसाइलों की आपूर्ति की मंजूरी देने के बाद स्थिति और तनावपूर्ण हो गई है।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब रूस और यूक्रेन के बीच तनाव काफी बढ़ चुका है, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले की मंजूरी देने के बाद। रूस ने इस फैसले पर गंभीर आपत्ति जताई है। अमेरिकी मंजूरी के बाद, रूस के प्रमुख सैन्य और राजनीतिक प्रतिष्ठान अब यूक्रेन के निशाने पर हैं। इस स्थिति के बाद, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एक संशोधित परमाणु नीति पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें कहा गया है कि अगर यूक्रेन रूस पर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमला करता है, तो इसे तीसरे देश की संलिप्तता माना जाएगा, और इसके जवाब में रूस परमाणु हमले का सहारा ले सकता है।

यूरोपीय देशों में युद्ध का खौफ

हालिया घटनाओं के बाद, यूरोप के तीन देशों – नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड में दहशत फैल गई है। इन देशों की सरकारों ने अपने नागरिकों को जरूरी सामान का भंडारण करने की सलाह दी है और अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया है। स्वीडन ने तो परमाणु युद्ध की स्थिति में विकिरण से बचाव के लिए आयोडीन की गोलियां खरीदने का आदेश भी दिया है। वहीं, नाटो और यूरोपीय संघ के सदस्य देश हंगरी और स्लोवाकिया ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले पर नाराजगी जताई है और आरोप लगाया है कि उनके निर्णय ने रूस-यूक्रेन युद्ध को और भड़काया है।

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