मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी। काला घोड़ा में इस आर्ट गैलरी में एक बार चित्रों की नुमाइश लग जाए, यह तमन्ना देश के हर बड़े-छोटे पेंटर-चित्रकार की रहती है। ऐसा नहीं कि मुंबई-दिल्ली में ढेरों आर्ट गैलरी हैं। फाइव स्टार होटल्स की भी अपनी आर्ट गैलरी हैं, लेकिन साल-दो साल की वेटिंग तो जहांगीर आर्ट गैलरी में सामान्य बात है। इसी आर्ट गैलरी में अभी (9 से 15 मई तक) ‘प्रभु जोशी : द फायनल एग्जीबिशन’ लगी है। तीन साल में यह पहला मौका है, जब यहां प्रदर्शित चित्रों के साथ ही नुमाइश देखने वालों को भी पता है अब प्रभु जोशी तो नहीं आएंगे।
मैं जब बंबई (अब मुंबई) में था, तब प्रभु जोशी के चित्रों, संतोष जड़िया के शिल्पों को देखने के लिए उमड़ने वाले नामचीन लोगों को नुमाइश देखने और प्रभु जोशी से बतियाते देखा है। तब अनिता (मलिक) जोशी और बाद में बेटे पुनर्वसु जोशी को यहां मेज के समीप बैठे, आने वालों को प्रभु दा के परिचय-पेंटिंग्ज वाले ब्रोशर देने के काम में लगे देखा है। अब जबकि कोराना के कहर ने असमय ही प्रभु जोशी को कला संसार से छीन लिया है, इस ‘फायनल एग्जीबिशन’ के लिए सारी तैयारी उनके पुत्र और पत्नी ने संभाल रखी है। जिस तरह शब्द अमर है, रंग अमर है वैसे ही प्रभु जोशी अपने साहित्य और जलरंग वाले चित्रों में अमर ही रहेंगे। बाकी सब के लिए प्रभु जोशी का न रहने का मतलब है दो साल पहले उनकी मौत हो जाना, लेकिन जो परिवार अपने प्रिय को खोता है उसके लिए तो वो शख्स अदृश्य रूप में यादों और आंसुओं में हर पल साथ रहता है।
‘प्रभु जोशी : द फायनल एग्जीबिशन’ को
लेकर अनिता जोशी लिखती हैं…
इन सारी पेंटिंग्स को देखते हुए, मैं तो सुन्न सी, बुत सी बनी हुई हूं। सूझ ही नहीं रहा कि मुम्बई हूं या इंदौर? इन सब में प्रभुजी क्यंू नहीं दिख रहे हैं, उनकी पेंटिंग्स कहां हैं? ये पेंटिंग्स इसी संसार में हैं या आकाश के फलक पर? सारी पेंटिंग्स धूमिल होकर डूबती सी लगने लगती हैं और लगता है, अब जमीन से आसमान तक कोरा, सफेद कैनवास है, जिस पर कोई रंग नहीं आएगा, कभी भी। वो सफेद रंग इस्तेमाल नहीं करते थे, सफेद के लिए, उतना कागज या कैनवास खाली छोड़ते थे, अबकी बार पूरा का पूरा ही खाली छोड़ दिया, ऐसा क्यूं किया उन्होंने, कितने सारे तो रंग लाये थे, कुछ दिन पहले ही। ये कैसा सफेद केनवास था, जिसने अपने पर रंग बिखरने ही नहीं दिए और चित्रकार को ही खुद में समेट कर लपेट कर ले गया।