
इंदौर। किसानों की आमदनी बढ़ाने और उन्हें फसल का उचित मूल्य दिलाने के सरकार के तमाम दावे कागजों पर तो अच्छे लगते हैं लेकिन जमीन पर यह दावे बुरी तरह से असफल है। इसका ताजा उदाहरण कपास की फसल बोने वाले किसान है। मालवा-निमाड़ में सफेद सोना कही जाने वाली कपास को उत्पादित करने वाले किसान इसका उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण परेशान है। सराकर ने कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो घोषित किया है लेकिन वर्तमान में मप्र की मंडियों में कपास की कीमत एमएसपी से काफी नीचे चल रही है। परेशान किसानों द्वारा लंबे समय से एमएसपी पर सरकारी खरीदी प्रारंभ करने की मांग कर रहे हैं। इसे देखते हुए सरकार ने भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के माध्यम से अक्टूबर माह के प्रारंभ में सरकारी खरीदी प्रारंभ करने की बात कही थी लेकिन कोई ना कोई बहान बनाकर लगातार एमएसपी पर खरीदी को टाला जाता रहा। परेशान किसानों ने जब आंदोलन और हड़ताल की धमकी दी तब जाकर सीसीआई ने मालवा-निमाड़ में कपास की खरीदी प्रारंभ की है।
23 में से मात्र 3 पर हुई प्रारंभ
सीसीआई के अनुसार मप्र में 23 केन्द्रों के माध्यम से किसानों से एमएसपी पर कपास की खरीदी की जाएगी। गुरुवार से खरगोन, बड़वाह और भीकनगांव में सरकारी खरीदी प्रारंभ कर दी गई है। वहीं अन्य सेंटरों पर भी खरीदी जल्द प्रारंभ करने की बात कही गई है। मप्र में खंडवा, खरगोन, बड़वानी, बुरहानपुर, अलीराजपुर, देवास, धार, रतलाम, झाबुआ और छिंदवाड़ा जिलों में सीसीआई ने सेंटर बनाए हैं।
7121 और 7521 रुपए एमएसपी
सरकार ने मध्यम लंबाई वाले कपास का एमएसपी 7121 रुपए और लंबे रेशे वाले कपास का समर्थन मूल्य 7521 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया है। मप्र में एच-4 क्वालिटी का कपास अधिक होता है जिसका एमएसपी 7421 रुपए तय है। वहीं वर्तमान में मध्य प्रदेश की मंडियों में कपास की औसत कीमत 6000 से 7000 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास ही बोली जा रही है। बेहतर क्वालिटी के चलते एक-दो मंडियों में दो-तीन सौदे एमएसपी मूल्य के आसपास हो रहे हैं लेकिन अधिकांश सौदों में किसानों को एमएसपी से काफी कम भाव मिल रहा है।
पंजीयन में भी परेशानी
एमएसपी पर कपास बेचने के लिए किसानों को भारतीय कपास निगम के केन्द्रों पर जाकर पंजीकरण करना अनिवार्य है। हालांकि सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी के चलते अधिकांश किसानों का पंजीयन नहीं हो पा रहा है जिसके चलते किसान परेशान है। जानकारों का कहना है कि सीसीआई पंजीयन के लिए किसानों को चालू वर्ष में कपास की फसल के रकबे का खसरा अपडेट होने की अनिवार्यता है। जबकि अधिकांश किसानों के कपास के रकबे के खसरे खाते आॅनलाइन अपडेट नहीं हुए हैं। जिसके चलते कपास बेचने के पूर्व पंजीयन नहीं हो पा रहा है।