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प्रदेश के हर 12 में से एक व्यक्ति को हेपेटाइटिस

मप्र में करीब 12 में से एक व्यक्ति हेपेटाइटिस बी या सी से पीड़ित हैं। इसकी बड़ी वजह जागरुकता का अभाव है। स्थिति यह है कि राजधानी में भी महज 57 प्रतिशत बच्चों को ही हेपेटाइटिस बी के टीके लग पाते हैं। जबकि, अब हेपेटाइटिस सी का इलाज काफी सरल और किफायती है। नियमित रूप से तीन से छह महीने में गोलियों के इस्तेमाल से ही इसका संक्रमण दूर हो सकता है।
पांच तरह का संक्रमण
हेपेटाइटिस एक दीर्घकालिक यकृत संक्रमण और सूजन है। यह वायरस की वजह से होता है। अब तक पांच तरह के हेपेटाइटिस संक्रमण का पता चल पाया है। डॉक्टरों के अनुसार ये पांच अलग-अलग वायरस के कारण होते हैं। इसीलिए इन्हें हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी, ई नाम दिया गया है। ए और ई प्रकार अल्पकालिक और बी व सी प्रकार दीर्घकालिक संक्रमण हैं। यह क्रोनिक हेपेटाइटिस का कारण बनते हैं। हेपेटाइटिस बी और सी अधिक खतरनाक होता है। क्योंकि यह वायरस सीधे लीवर पर हमला करता है।
आगे चलकर यह लीवर कैंसर का कारण बनता है। चूंकि, हेपेटाइटिस के कोई लक्षण नहीं होते हैं, इसलिए मरीजों में इसका पता तब तक नहीं चल पाता जब तक कि वायरस लिवर को पूरी तरह से नुकसान नहीं पहुंचा देता।

अक्टूबर से एम्स में भी होगा किडनी ट्रांसप्लांट
एम्स भोपाल में अक्टूबर से किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू हो जाएगी। इसके लिए उपकरणों की खरीदी और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यहां किडनी ट्रांसप्लांट के साथ क्रानिक एंबुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (सीएपीडी), प्लाज्मा फेरेसिस और आइसीयू डायलिसिस की सुविधा भी शुरू होगी। विशेष बात यह है कि किडनी ट्रांसप्लांट निजी अस्पताल के मुकाबले 10 गुना कम खर्च में हो जाएगा। एम्स में वर्तमान में डायलिसिस की सुविधा है। किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों के पंजीयन की प्रक्रिया अगस्त से शुरू हो जाएगी। एम्स भोपाल के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि यहां किडनी ट्रांसप्लांट दिल्ली एम्स के रेट पर किया जाएगा। इसमें एक से डेढ़ लाख या कुछ मामलों में अधिकतम दो लाख रुपए खर्च आएंगे।
डोनर प्रोग्राम शुरू करेगा एम्स- किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एम्स भोपाल डोनर प्रोग्राम भी शुरू करने की योजना तैयार कर रहा है। प्रोग्राम के तहत ट्रांसप्लांट शुरू करने के लिए विशेष ओपीडी में मरीजों को चिह्नित किया जाएगा। इसमें मरीज और किडनी देने वाले दोनों का परीक्षण किया जाएगा। इसके बाद सभी जांचें कराई जाएंगी। सब कुछ सही मिलने पर ट्रांसप्लांट हो सकेगा।

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