इंदौर। हाल ही में एक मामला प्रकाश में आया है, जिसमें उपभोक्ता फोरम ने फैसला ना सुनाते हुए दोनों पक्ष के बीच समझौता करा दिया। दरअसल मामला यह है कि मरीज अंकित अग्रवाल कोविड-19 की सेकंड वेव में संक्रमित हुए थे, जिसके कारण विभिन्न अस्पतालों में उनका इलाज हुआ। उन्होंने स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी से पॉलिसी ले रखी थी, जिसमें नकदरहित सुविधा थी। इसके अंतर्गत इंश्योरेंस कंपनी द्वारा बताए गए अस्पताल में ही इलाज कराना होता है। अंकित अग्रवाल ने भी स्टार हेल्थ एण्ड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी से अनुबंधित मोहक हाईटेक स्पेशलिटी अस्पताल में इलाज कराया। अस्पताल में भर्ती होने के पहले उन्होंने इंश्योरेंस कंपनी को सूचना दी, मगर कंपनी ने नकदरहित सेवा देने से मना कर दिया, जिसकी वजह से मरीज के परिजनों के पास दो ही रास्ते थे या तो मरीज को मरने देते या फिर पैसों का इंतजाम करते। परिजनों ने जैसे-तैसे पैसों का इंतजाम किया और अंकित का इलाज कराया। इंश्योरेंस कंपनी का मन इतने में भी नहीं भरा। जब मरीज अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ, तब उन्होंने अपनी दावा राशि के लिए इंश्योरेंस कंपनी में अस्पताल से इलाज के दौरान दिए गए सारे बिल जमा किए, लेकिन कंपनी ने सिर्फ 20 प्रतिशत ही क्लेम पास किया और 80 प्रतिशत अमान्य बताते हुए काट लिया, जिस पर मरीज ने कोर्ट की शरण ली और 19 अगस्त 2021 को उपभोक्ता फोरम में केस रजिस्टर्ड कराया। शुरुआत में इंश्योरेंस कंपनी एक सिरे से नकारती रही और कहती रही कि उन्होंने सही मापदंड से पैसा दिया है, लेकिन बाद में जब कंपनी के खिलाफ मरीज ने सबूत पेश किए तो कंपनी के वकील ने उन्हें एक आॅफर दिया, जो उन्होंने नकार दिया। मई 2023 में मरीज के वकील ने फोन करके अंकित के परिवार को बताया कि आपका केस लंबा खींच जाएगा। कंपनी उसे दूसरी कोर्ट में लेकर जाने की बात कर रहे हैं। इसलिए अच्छा है आपको जो दे रहे हैं वह ले लें। परिणामस्वरूप मरीज ने इंश्योरेंस कंपनी से लगभग तीन लाख दावे की राशि में से 2,10,000 की राशि लेना स्वीकार कर लिया, लेकिन मरीज को अभी भी न्याय नहीं मिला, क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी ने ना केवल मरीज को बीच रास्ते में मरने लिए छोड़ दिया, बल्कि दावे की राशि का आधा भुगतान किया। मिली गई दावे की राशि में से मरीज के वकील द्वारा कोर्ट में लगाए गए केस में हुए राशि का खर्च और दो साल तक कोर्ट में चले केस का विधिगत ब्याज के भुगतान को देखते हुए मरीज को मिली दावे की राशि का कुल 50 प्रतिशत भुगतान करना पड़ा। इस आधार पर मरीज को इंश्योरेंस कंपनी द्वारा मिली गई दावे की राशि का 50 प्रतिशत ही प्राप्त हुआ और मरीज को 50 प्रतिशत का नुकसान हुआ।
किस्त की राशि समय पर भरवाने के बाद भूल जाती है कंपनी
यह इस कंपनी का पहला केस नहीं है।आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं। मरीज इंश्योरेंस कंपनी की किस्त की राशि को समय पर भरता है, किंतु जब कंपनी द्वारा मरीज की बीमारी पर अस्पताल में हुए भुगतान की राशि को चुकाने का समय आता है, तो कंपनी भुगतान करने से पीछे हट जाती है। एक आम इंसान इंश्युरेंस कंपनी से इसलिए बीमा करवाता है, ताकि भविष्य में कोई बीमारी या दुर्घटना होने पर कंपनी उसकी मदद कर सके। किंतु इंश्युरेंस कंपनी अपनी किस्त की राशि लेकर भी अपने ग्राहक को भूल जाती है। जब हिन्दुस्तान मेल के संवाददाता ने स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी के दावा विभाग में डॉ. गोविन्द से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।