
इंदौर। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच बढ़ती तल्खी से इंदौर के भाजपा नेता भी हैरान-परेशान हैं। बताया जा रहा है कि तनातनी की शुरुआत जून से हुई थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए अभियान ‘एक पेढ़ मां के लिए’ के तहत इंदौर ने 51 लाख पौधे रोपकर रिकॉर्ड बनाया था। इस रिकॉर्ड का पूरा श्रेय इंदौर से लेकर दिल्ली तक विजयवर्गीय को मिला। बस, यहीं से दोस्ती में खटास शुरू हो गई।
सियासी समीक्षकों की मानें तो सीएम और विजयवर्गीय के बीच मतभेद अब मनभेद में बदलता जा रहा है, जिसका असर मालवा की सियासत से लेकर इंदौर के विकास तक पर पड़ेगा। इसकी शुरुआत 14 जुलाई से हुई थी। तब एक दिन में 11 लाख से ज्यादा पेड़ लगाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। इसके लिए गृहमंत्री अमित शाह ने विजयवर्गीय और उनकी टीम की तारीफ की। 28 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी ने भी अभियान को सराहा। बताया जा रहा है कि इस कार्यक्रम लिए जो राशि खर्च हुई, उसका बड़ा हिस्सा नगर निगम ने दिया… बाकी मप्र सरकार ने। इंदौर की विभिन्न संस्थाओं ने भी पैसा दिया। सामूहिक प्रयास से इंदौर ने रिकॉर्ड बनाया। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सिर्फ अतिथि बनकर रह गए, जैसे- दूसरे थे। इंदौर से भोपाल तक होर्डिंगों पर छा गए कैलाश विजयवर्गीय। मीडिया मैनेजमेंट के चलते अखबारों से लेकर राष्ट्रीय चैनलों तक पर उन्हीं के इंटरव्यू चले।
इसमें कोई शक नहीं है कि 22 जनवरी के राम मंदिर उद्घाटन के दौरान इंदौर में ऐतिहासिक आयोजन करा चुके विजयवर्गीय के लिए पौधारोपण अभियान किसी शक्ति प्रदर्शन से कम नहीं था। रिकॉर्ड बनने पर उनकी वाहवाही जरूर हुई, लेकिन यदि रिकॉर्ड न बनता तो ताने भी मिलते। यह भी सच है कि इसी कार्यक्रम से विजयवर्गीय को लेकर डॉ. मोहन यादव की बॉडी लैंग्वेज बदल चुकी थी।
आदत है बुरा मानना !
कहा जा रहा है कि विजयवर्गीय खुद को प्रदेश का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और उन्हें दूसरा भाता नहीं है। पहले उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और शिवराजसिंह चौहान की मुखालफत की। पार्टी ने दोनों बदल दिए। डॉ. मोहन यादव को कमान सौंपी। यहां भी सीनियर-जूनियर वाला मनभेद बना रहा। इंदौर में ऐसे नेताओं की लिस्ट लम्बी है, जो विजयवर्गीय को नहीं सुहाते।
हाउसिंग बोर्ड गए ही नहीं
विजयवर्गीय नगरीय प्रशासन एवं आवास मंत्री हैं। भोपाल में पर्यावास भवन में आॅफिस है, जहां इंदौर में निगमायुक्त और कलेक्टर रहते अपना जलवा बिखेर चुके मनीष सिंह आयुक्त के रूप में बैठते हैं। बगल में भव्य आॅफिस है, जहां विजयवर्गीय सिंह के आने के बाद गए ही नहीं।