
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 5 नवंबर को राज्य के सभी थाना परिसरों में मंदिरों के निर्माण पर रोक लगा दी। यह आदेश एक याचिका के आधार पर दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कई थानों में अवैध रूप से मंदिर बनाए जा रहे हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक स्थलों के निर्माण पर रोक लगाई थी।
कोर्ट ने 19 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई निर्धारित की है और राज्य सरकार के अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने यह आरोप लगाया कि अधिकारियों को इस निर्माण कार्य की जानकारी दी गई थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। कोर्ट ने निर्देश दिया कि जो धार्मिक स्थल पहले से बने हुए हैं, उनकी स्थिति रिपोर्ट पेश की जाए और नए निर्माण पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मंगलवार (5 नवंबर) को सभी थाना परिसरों में बन रहे मंदिरों के निर्माण पर रोक लगा दी। यह आदेश एक सरकारी कर्मचारी और अधिवक्ता ओम प्रकाश यादव द्वारा दायर याचिका के बाद आया, जिसमें सभी थाना परिसरों में मंदिरों के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने राज्य के सभी थानों में बन रहे मंदिरों पर रोक लगाने का आदेश दिया। इसके बाद मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी। इसके अलावा, कोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह विभाग, नगरीय प्रशासन, डीजीपी मध्य प्रदेश, कलेक्टर जबलपुर और पुलिस अधीक्षक जबलपुर सहित जिले के चार पुलिस थानों – सिविल लाइंस, विजय नगर, मदन महल और लार्डगंज को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही सार्वजनिक स्थलों पर मंदिरों के निर्माण पर रोक लगा चुका है। इसके बावजूद कई थानों में मंदिरों का निर्माण जारी था। याचिका में उन थानों की तस्वीरें भी शामिल की गई हैं, जहां वर्तमान में मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सतीश वर्मा, अमित पटेल और ग्रीष्म जैन ने अपना पक्ष रखा।
याचिकाकर्ता ने लगाए आरोप
याचिकाकर्ता के वकील सतीश वर्मा ने कहा कि अदालत ने मध्य प्रदेश के विभिन्न थानों में अवैध रूप से धार्मिक स्थल बनाने को लेकर गंभीर नोटिस जारी किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश के विभिन्न थानों में, खासकर थानों के परिसर में, अवैध रूप से धार्मिक स्थल, विशेष रूप से मंदिर बनाए जा रहे हैं, जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने लगभग 20 साल पहले स्पष्ट रूप से आदेश दिए थे कि सार्वजनिक स्थानों, विशेषकर कार्यालयों और सार्वजनिक सड़कों पर धार्मिक स्थलों का निर्माण नहीं किया जा सकता है। इसके तहत राज्य सरकार के सभी मुख्य सचिवों को निर्देश दिए गए थे कि कलेक्टरों के माध्यम से इस आदेश का पालन सुनिश्चित करें। याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य के कलेक्टर, जिला मजिस्ट्रेट और आरएसपी अधिकारियों को इस निर्माण कार्य के बारे में सूचित किया गया था, लेकिन किसी भी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, और निर्माण कार्य लगातार जारी रहा।
उन्होंने कहा कि अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि जो धार्मिक स्थल पहले से इन थानों में बने हुए हैं, उनकी स्थिति रिपोर्ट पेश की जाए। अगर कोई निर्माण कार्य चल रहा है या छत डाली जा रही है, तो उस पर तुरंत रोक लगाई जाए। अदालत ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि इन अवैध निर्माणों को जल्द से जल्द हटाया जाए और जो नए निर्माणाधीन धार्मिक स्थल हैं, उन पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए।
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