भोपाल आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बूथ कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में जीत के मंत्र देते हुए कांग्रेस सहित अन्य दलों में जड़ जमा चुके परिवारवाद पर भी खूब बोले थे। कार्यकर्ताओं सहित लाइव सुनने वालों को भी मोदी की यह साफगोई पसंद आई है। हालांकि, उनके इस हमले से प्रदेश भाजपा के उन कई नेताओं की नींद भी हराम हो गई है, जो पार्टी में वंश परंपरा के प्रामाणिक दस्तावेज माने जाते हैं।
इंदौर की बात करें तो लक्ष्मणसिंह गौड़ के असामयिक निधन के बाद पत्नी मालिनी गौड़ विधायक के बाद महापौर भी हो गईं। अब उन्हें टिकट नहीं मिले, तो विकल्प के रूप में पुत्र का नाम आगे बढ़ाने की सोच पर काम चल रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश के बल्ला कांड को लेकर पीएमओ का रुख भले ठीक ना रहा हो, लेकिन बेटे को टिकट देने की अपनी जिद को जीत में बदलने के बाद से वे भी पार्टी में परिवारवाद की मजबूत कड़ी बन गए हैं।
राजधानी की बात करें तो पूर्व सीएम बाबूलाल गौर की पुत्रवधु कृष्णा विधायक और महापौर भी रही हैं। प्रदेश में सीएम रहे तीन नेताओं में सुंदरलाल के भतीजे सुरेंद्र पटवा, वीरेंद्र कुमार सखलेचा के पुत्र-मंत्री ओम प्रकाश सखलेचा और उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी से लेकर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के विधायक भाई जालम सिंह, देवास के पूर्व विधायक स्व. तुकोजीराव की पत्नी गायत्री राजे, विधानसभा अध्यक्ष रहे ईश्वरदास रोहाणी के पुत्र-विधायक अशोक रोहाणी, मंत्री विजय शाह के भाई-विधायक संजय शाह, लोकसभा अध्यक्ष रहे डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे के पुत्र-विधायक राजेंद्र पांडे, पूर्व सांसद कैलाश सारंग के पुत्र-मंत्री विश्वास सारंग, भाजपा की संस्थापकों में से एक विजयाराजे की बेटी-मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया – ये सब भी पार्टी में परिवारवाद की मजबूत होती जड़ में सहायक हैं। बड़े नेता लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन का मान रख लें और उनके पुत्र को राऊ से प्रत्याशी बना दें तो इस अमरबेल में एक कोपल और फूट जाएगी।
प्रधानमंत्री ने जिस तरह विपक्ष को परिवारवाद के मुद्दे पर घेरा है, तो यह संभव नहीं कि मोशाजी को मप्र में फलते-फूलते परिवारवाद की जानकारी नहीं हो। मोदी के भाषण के महीन अर्थ समझने वाले पार्टी के कई नेता मान रहे हैं कि पांचवीं बार मप्र में भाजपा की सरकार के लिए टिकट वितरण में केंद्रीय नेतृत्व ने परिवारवाद के आरोप से बचने का मन बना लिया है।