‘छत्रपति शिवाजी ने परिवाद नहीं, योग्यता का सम्मान किया’……………..
हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के संकल्प को पूरा करने के उद्देश्य से छत्रपति शिवाजी ऐसे शासक रहे, जिनके पराक्रम को अन्य राजाओं ने तो स्वीकारा ही, औरंगजेब ने भी उनके राज्याभिषेक को मान्यता दी। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव की स्थापना, सैनिकों को पेंशन, भूमि-कृषि सुधार की ऐसी नीतियां लागू कीं, जिसका आज भी पालन हो रहा है। शिवाजी प्रजा पालक तो थे ही, अधीन राजाओं को उन्होंने राजकाज की पूर्ण स्वतंत्रता दी। उनसे पहले और बाद में भी किसी राजा को छत्रपति नहीं माना गया, क्योंकि उनके नेतृत्व को सभी धर्मों के लोग आश्रयदाता मानते थे। राज्य की रक्षा के लिए वायुसेना की स्थापना उन्हीं की दूरदृष्टि थी। शिवाजी आत्म स्वाभिमान, धर्मरक्षक तो थे ही, 300 किलो को जीतने वाले छत्रपति ने योग्यता का सम्मान किया, कोई किलेदार उनका रिश्तेदार नहीं था।
डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति के तत्वावधान में आयोजित व्याख्यानमाला चिंतन-यज्ञ के समापन पर डेली कॉलेज के सभागार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह 69 वर्षीय दत्तात्रेय होसबाले ने ‘शिवराज्याभिषेक का संदेश’ विषय पर बोलते हुए छत्रपति शिवाजी के बहुआयामी-प्रभावी व्यक्तित्व को समझाते हुए कहा- भारत के इतिहास में शिवाजी महाराज हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के लिए अवतारी पुरुष थे।
‘पूरे समाज के लिए छत्र के समान थे’
शिवाजी महाराज के मन में सम्राट बनने की इच्छा नहीं थी, किंतु विदेशी सत्ता को समाप्त करने के लिए वे राजा हुए, उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई, क्योंकि वे सम्पूर्ण समाज के लिए छत्र के समान हैं। उन्होंने जल सिंचन की व्यवस्था, नौकायन, भूमि की नाप, मुद्रा, कर, मंत्रिमंडल जैसी आदर्श व्यवस्था अपने शासनकाल में प्रारंभ की।
हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के लिए मृत्युपर्यंत लगे रहे शिवाजी महाराज
उनके राज्याभिषेक समारोह का यह 350वां वर्ष है। स्वाभिमान शून्य वाले कालखंड में 15 वर्षीय बालक ने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना का संकल्प लिया और मृत्युपर्यंत इस संकल्प की पूर्ति के लिए लगे रहे। अन्याय, अत्याचार, निराशा के कालखंड में उन्होंने अपने साथियों के सम्मुख अपने सपने को रखा, ताकि अपना ध्येय सबका ध्येय बने। शिवाजी महाराज की ईश्वर में आस्था तो थी ही, लेकिन उनके राज्य में सभी धर्म-पंथ, स्त्री सम्मान भी था। इससे उनका व्यक्तित्व महान बना। विदेशी विद्वानों ने भी परिस्थिति के आंकलन करने, हर समस्या का सामना करके रास्ता निकालने, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता की प्रशंसा की है। शत्रु से मैदान में लड़ने की अपेक्षा उसे अपने घेरे में लाकर गुरिल्ला आक्रमण से परास्त करने के युद्धकौशल को आज कई देश सर्वमान्य युद्ध नीति मानते हैं। वायुसेना की स्थापना के साथ उन्होंने बड़े जहाज और छोटी नाव बनाई। राजकाज में होने वाले खर्चों के लिए आय जुटाने के लिए उन्होंने इन जहाज-नावों को व्यापार में लगाया।
‘मालवा के बलिदानी’
फिल्म का प्रदर्शन
कार्यक्रम के प्रारंभ में ‘मालवा के बलिदानी’ शॉर्ट फिल्म का प्रदर्शन किया गया। इस फिल्म में देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन परिचय का चित्रण किया गया। एकल गीत की प्रस्तुति अमित आलेकर ने दी। व्याख्यान की अध्यक्षता प्रकाश केमकर ने की। विशेष अतिथि मेडीकेप्स विवि के कुलपति प्रो. दिलीप पटनायक थे। हेडगेवार स्मारक समिति के अध्यक्ष ईश्वर हिंदुजा की उपस्थिति रही। विषय प्रस्तावना विनय पिंगले ने रखी। आभार सुजीत सिंहल ने माना। संचालन अर्चना खेर ने किया। श्रुति केलकर द्वारा वंदे मातरम् के सामूहिक गान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
‘मेरा उद्बोधन लंबा लगे तो मुझे भी स्लिप भेज देना’
करीब सवा घंटे के उद्बोधन की शुरुआत में ही होसबाले ने कह दिया था कि मेरा उद्बोधन लंबा लगे तो आप मुझे भी आप स्लिप भेज सकते हैं। यह चुटकी उन्होंने इसलिए भी ली कि उनसे पहले बोल रहे विशेष अतिथि का उद्बोधन रोचक तो था, लेकिन बेहद लंबा होने से उन्हें दो बार स्लिप भेजकर याद दिलाना पड़ी थी।