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जाते-जाते प्रधानमंत्री चुनाव का मुद्दा दे गए

नई दिल्ली, एजेंसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में कॉमन सिविल कोड की जोरदार पैरवी की। इससे विपक्षी दलों के साथ-साथ मुस्लिम संगठनों में भी खलबली मच गई है। आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आनन-फानन में देर रात इमर्जेंसी मीटिंग की। करीब 3 घंटे चली बैठक में तय किया गया कि इस मुद्दे पर लॉ कमिशन को एक ड्रॉफ्ट तैयार करके भेजा जाएगा। आॅनलाइन हुई मीटिंग में प्रस्तावित कानून का विरोध करने की रणनीति पर चर्चा हुई। वर्चुअल मीटिंग में आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष सैफुल्लाह रहमानी, मौलाना खालिद राशिद फिरंगी महली समेत एआईएमपीएलबी के कई सदस्य और वकील शामिल हुए।

समान नागरिक संहिता क्या है
समान नागरिक संहिता का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 44 में है। अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्यों को कई सुझाव दिए गए हैं। इसी में से एक है समान नागरिक संहिता। यह देश के हर नागरिक को विवाह, तलाक, गोद और उत्तराधिकार जैसे मामलों में समान अधिकार देता है… चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म या समुदाय से हो, देश का कानून सभी पर समान रूप से लागू होगा। वर्तमान में अलग-अलग धर्म और समुदायों के व्यक्तिगत कानून हैं। यह कानून सभी धर्म-समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों को एकरूपता प्रदान करने का सुझाव देता है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों की होगी।

मप्र में चुनावी मायने
सीएसडीएस के संस्थापक प्रो. संजय कुमार कहते हैं कि अगर समान नागरिक संहिता लागू होती है तो ये व्यापक तौर पर मुसलमानों को ही प्रभावित करेगी, क्योंकि यह मुख्य रूप से शरीयत को चुनौती देगी। आंशिक रूप से ईसाइयों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। इससे हिंदुओं की बहुसंख्यक आबादी का झुकाव भाजपा की तरफ होगा। इस सवाल पर कि केंद्र खुद सामने ना आकर राज्यों को आगे क्यों कर रही है? जबकि स्पष्ट है कि राज्यों के पास इसे लागू कर पाने का अधिकार नहीं है।

महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा
महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलना शुरू हो जाएगा। कोई भी पारसी महिला अगर दूसरे धर्म में शादी करती है तो उनके व्यक्तिगत कानून के हिसाब से उन्हें पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता।
शरीयत को मिलेगी चुनौती
बहुविवाह करने वाले मुसलमानों (7% आबादी) और आदिवासियों (21% आबादी) पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। तलाक और उत्तराधिकार को लेकर इनके व्यक्तिगत कानून बहुसंख्यक हिंदुओं से अलग हैं।
लिव इन रिलेशनशिप होगा प्रभावित
यूसीसी के ड्रॉफ्ट में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर भी कुछ कानूनी प्रक्रियाएं होंगी, लेकिन यूसीसी आ जाने के बाद डिक्लेरेशन अनिवार्य होगा।

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