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सरकारी काम की कछुआ चाल से क्यों रहातुलसी नगर बेहाल

इंदौर। सरकारी विभागों में काम किस तरह से अटकते हैं… तुलसी नगर के मामले से इसे एक बार फिर समझा जा सकता है। इस कॉलोनी को वैध की सूची में डालने के लिए कलेक्टोरेट की नजूल शाखा की अनुमति आवश्यक थी। तत्कालीन निगमायुक्त प्रतिभा पाल ने एक साल पहले ही तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह को इस आशय का अनुरोध पत्र लिख दिया था। नजूल विभाग में पत्र वाली यह फाइल न सिर्फ धूल खाती रही, बल्कि तुलसी नगर मामले में जब भी हलचल हुई… नजूल विभाग का रटारटाया यही जवाब था कि नगर निगम से विधिवत् पत्र मिलने के बाद ही एनओसी जारी की जाएगी।
कलेक्टर ने वादा पूरा किया
कलेक्टर इलैया राजा टी को जब यह जानकारी लगी तो उन्होंने एसडीएम सपना लोवंशी को निगम के पत्र वाली फाइल खोजने पर लगाया। एसडीएम ने कलेक्टर के सम्मुख यह फाइल पेश की तो उन्होंने वादे के मुताबिक नजूल विभाग से अनुमति जारी करवाने के साथ ही नगर निगम को इसकी जानकारी भी भिजवाई। इसके बाद ही तुलसी नगर को वैध करने वाली प्रक्रिया में तेजी आई।
महापौर सचिवालय में तुलसी नगर रहवासी संघ के सदस्यों को खुद महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने आमंत्रित किया था। करीब आधे घंटे तक चली चर्चा में स्थिति जन अदालत जैसी बन गई। कॉलोनी सेल के अधिकारियों से महापौर सवाल पर सवाल किए जा रहे थे। तुलसी नगर कॉलोनी का नाम वैध हुई कॉलोनियों वाली पहली सूची में क्यों नहीं आया..? यदि नजूल विभाग से एनओसी में विलंब हो रहा था तो मुझे बताया क्यों नहीं? नजूल के साथ-साथ आप सबकी भी इसमें कहीं ना कहीं लापरवाही तो है ही। महापौर द्वारा किए जा रहे सवालों के जवाब देने की कोशिश कर रहे कॉलोनी सेल के अपर आयुक्त मनोज पाठक और एई पीसी जैन अपने स्तर पर की गई कार्रवाई की जानकारी देने के साथ बताते रहे कि कलेक्टोरेट से नजूल की अनुमति ही तीन दिन पहले मिली है, उस अनुमति के अभाव में हम रुके रहे। यह अनुमति मिलने के बाद हमने लेआउट प्लान के लिए निजी कंपनी के सर्वेयर गंगराड़े को भी जानकारी दे दी थी, लेकिन सौ कॉलोनियों के लेआउट प्लान का दबाव होने से तुलसी नगर की प्रक्रिया का पालन तीव्र गति से नहीं हो पाया।

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