चीन और पाकिस्तान सीपेक (CPEC) के दस साल पूरे होने पर भले ही एक दूसरे को बधाइयां दे रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह अतिमहात्वाकंक्षी परियोजना चीन के गले की फांस बन गयी है। चीन के उपप्रधानमंत्री ही लिफेंग रविवार को इस्लामाबाद पहुंचे तो थे अपनी दोस्ती और परियोजना के प्रति अपनी वचनबद्धता निभाने के लिए, लेकिन परदे के पीछे उन्होंने आतंकवाद की भेंट चढ़ रही इस परियोजना पर अपनी चिंता भी जतायी। 62 अरब डॉलर के निवेश वाली इस परियोजना में चीन पैसे के साथ अपने लोगों को भी खोता जा रहा है। उसके दर्जनों नागरिक पाकिस्तान में आंतकवाद का शिकार बन चुके हैं।
चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर, जो सीपेक के नाम से ज्यादा मशहूर है, 2013 में शुरू हुआ। यह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। प्रारंभ में इसकी लागत 46 अरब डॉलर आंकी गई थी, लेकिन बाद में इसका बजट बढ़ाकर 62 अरब डॉलर तय कर दिया गया। चीन और पाकिस्तान ने इस परियोजना को गेम चेंजर के रूप में प्रचारित किया, लेकिन समय बीतने के साथ यह परियोजना पाकिस्तान के लिए आर्थिक संकट तो चीन के लिए आर्थिक के साथ-साथ मानवीय संकट का पर्याय बन गई है।
सीपेक पश्चिमी चीन के खुनजेराब से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर तक हाईवे, रेलवे और एनर्जी पाइपलाइन की परियोजना है। उसमें सबसे महत्वपूर्ण ग्वादर पोर्ट है, जिसे चीन ने दूसरा दुबई बनाने के सपने के साथ शुरू किया था। लेकिन अभी तक पाकिस्तान को इससे कोई फायदा नहीं मिला है। उल्टे महंगे कर्ज और परिवहन खर्च में बढ़ोतरी के कारण बिजली और गैस महंगी ही होती चली जा रही है। यह सपना अब भयानक हकीकत में बदलने लगा है।
सीपेक पश्चिमी चीन के खुनजेराब से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर तक हाईवे, रेलवे और एनर्जी पाइपलाइन की परियोजना है। उसमें सबसे महत्वपूर्ण ग्वादर पोर्ट है, जिसे चीन ने दूसरा दुबई बनाने के सपने के साथ शुरू किया था। लेकिन अभी तक पाकिस्तान को इससे कोई फायदा नहीं मिला है। उल्टे महंगे कर्ज और परिवहन खर्च में बढ़ोतरी के कारण बिजली और गैस महंगी ही होती चली जा रही है। यह सपना अब भयानक हकीकत में बदलने लगा है।
चीन ने पाकिस्तान में इस परियोजना के लिए 25 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष निवेश किया है। 1,000 किलोमीटर सड़क और 6,000 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं पर काम भी शुरू हो गया। लेकिन यह निवेश पाकिस्तान के लिए फायदे की बजाय बर्बादी का कारण बन गया। पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा इस्लामाबाद इस परियोजना के लिए कर्ज पर कर्ज लेता चला गया। पाकिस्तान पर लभगग 100 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, उसमें से एक तिहाई से अधिक चीन से लिया गया कर्ज है। हालात यहां तक पहुंच गए कि पाकिस्तान के डिफाॅल्ट होने का खतरा उत्पन्न हो गया। चीन ने अपने कर्ज को वसूल न करके उसे रोल ओवर कर दिया है, पर उसे माफ नहीं करने वाला है। यानी आने वाले दिनों में चीनी कर्ज में और इजाफा ही होने वाला है।