डॉ.राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि 12 अक्टूबर के अवसर पर समाजवाद पर बहुत चर्चा हो रही है। हम समाजवाद और वैज्ञानिक समाजवाद के बारे में बहुत चचाएं सुनते आए हैं। हमारे बहुत सारे मित्र जो समाजवादी विचारों से प्रभावित रहे हैं, कई बार समाजवाद की बात किया करते थे। हम कई बार सोचा भी करते थे कि आखिर यह समाजवाद क्या है? और इसके बारे में जानने की इच्छा लगातार बलवती होती चली गई। हमने अपने छात्र जीवन में पढ़ा था कि यहां जो लोग खेती करते है वह भूखे मरते हैं, जो लोग मकान बनाते हैं वह सड़कों पर रहते हैं, जो कपड़ा बनाते हैं वह नंगे रहते हैं। तभी कुछ दिन बाद पता चला कि ये शब्द जर्मनी के दार्शनिकों कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स के हैं। बाद में छात्र संघर्ष और पढ़ते-पढ़ते पता चला कि समाजवाद के असली जनक कार्ल मार्क्स और एंगेल्स हैं, जिन्होंने इसे वैज्ञानिक समाजवाद की संज्ञा दी और 19वीं सदी के उत्तरार्ध से दुनिया में वैज्ञानिक समाजवाद की धूम मच गई जो आज भी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ और सबसे चर्चित विचारधारा का रूप धारण किए हुए हैं।
अब यहां पर यह जानना आवश्यक है कि आखिर यह वैज्ञानिक समाजवाद क्या है? जर्मनी के दार्शनिकों कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने मानव समाज का अध्ययन करके बताया कि मानव समाज अभी तक आदिम साम्यवाद, दास समाज, सामंती समाज, पूंजीवादी समाज व्यवस्था से होकर गुजरा है। इसके आगे का विकास समाजवादी समाज से होकर गुजरेगा और इस समाजवाद को ही मार्क्स ने वैज्ञानिक समाजवाद की संज्ञा दी और बताया कि पूंजीवादी व्यवस्था के बाद दुनिया में समाजवादी व्यवस्था कायम होगी और आज इस व्यवस्था को ही वैज्ञानिक समाजवाद कहा जाता है।
वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था पर मार्क्स और एंगेल्स ने अवधारित किया था कि दुनिया में दो वर्ग हैं पूंजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग। इसमें पूंजिपति वर्ग मजदूरों का शोषण करता है, उनकी मेहनत को हड़प लेता है, उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं देता। इस प्रकार उनमें लगातार संघर्ष से चलता रहता है। उन्होंने आगे कहा कि पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपतियों और मजदूर वर्ग के बीच जीवन-मरण का संघर्ष होगा, जिसके परिणाम स्वरूप मजदूर वर्ग के नेतृत्व में समाजवादी व्यवस्था कायम होगी और सरकार मजदूर वर्ग की होगी। यह व्यवस्था समाज के सब लोगों के कल्याण और सबके विकास के लिए काम करेगी, जिसमें सबको शिक्षा, सबको काम, सबको स्वास्थ्य, सबको घर मुहिया कराए जाएंगे और जमीन-जल, जंगल, उत्पादन और सार्वजनिक संपत्ति पर समाज का कब्जा हो जाएगा।
मार्क्स और एंगेल्स की इस विचारधारा को लेनिन ने और पुख्ता किया और पहली दफा किसानों और मजदूरों में एकता कायम करके कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में, रुस में जार की सरकार से लोहा लिया और वहां पर भयंकर संघर्ष के बाद, जार की सत्ता को ध्वस्त करके, उसमें मजदूर और किसानों के नेतृत्व में मेहनतकशों का राज कायम किया गया। यह संघर्ष रूस की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में आगे बढ़ा और कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में रूस में समाजवादी समाज की स्थापना की गई और दुनिया में सबसे पहले मजदूरों और किसानों का राज कायम किया गया।
क्रांति के बाद रूस में सबको रोटी, सबको मुफ्त शिक्षा, सबको मुफ्त इलाज, सब को मुफ्त बिजली, सबको घर मुहैया कराए गए। हजारों साल से चले आ रहे शोषण, अन्याय, भेदभाव और जुल्मों-सितम का खात्मा करके समानता, न्याय और भाईचारे के सिद्धांतों पर समाजवादी व्यवस्था की स्थापना की गई। उत्पादन, वितरण, उद्योग और जमीन पर सब का निजी अधिकार खत्म करके, इन सब को पूरे समाज की संपत्ति बना दिया गया। सारी जनता को मुफ्त बिजली मुहिया कराई गई। इस समाजवादी क्रांति के बाद, रूस दुनिया की एक महाशक्ति बन गया।
1917 की रूसी क्रांति के बाद, दुनिया में सबसे पहले किसानों मजदूरों को अपना भाग्य विधाता बनाया गया, उनकी सरकार और सत्ता कायम की गई और समाज में शोषणविहीन और अन्यायरहित व्यवस्था कायम की गई और इस प्रकार मानव इतिहास में सबसे पहले वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांतों को, अमलीजामा पहनाकर, धरती पर उतारा गया।
इसके बाद दुनिया में वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था की आंधी चल गई। देखते ही देखते दुनिया समाजवादी और पूंजीवादी दो धडों में बंट गई। उसके बाद चीन, पूर्वी यूरोप, कोरिया, वियतनाम, बोलिविया, क्यूबा और दुनिया का तीसरा हिस्सा, लाल हो गया। दुनिया दो हिस्सों में बंट गई, कमेरा यानी मेहनतकश वर्ग और लुटेरा यानी पूंजीपति वर्ग। इसके बाद पूरी दुनिया में समाजवाद की आंधी चल पड़ी। हमारा देश भी रुसी क्रांति के प्रभाव से अलग-थलग न रह पाया। मौलाना हसरत मोहानी ने सबसे पहले 1921 में इंकलाब जिंदाबाद के नारे की रचना की। हमारे देश में कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदुस्तानी समाजवादी गणतंत्र संघ के नेतृत्व में वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था की व्याख्या और बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार किया गया। इस अभियान में भगत सिंह और उसके साथियों ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की। उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में इंकलाब जिंदाबाद के नारे को अपनाया और इसे मजदूरों, किसानों, छात्रों और नौजवानों और सारी संघर्षरत जनता का नारा बनाया और कहा कि जब तक मार्क्सवादी सिद्धांतो पर आधारित समाजवादी व्यवस्था और समाज की स्थापना नहीं की जाती, तब तक जनता को, किसानों, मजदूरों और मेहनतकशों को हजारों साल पुराने शोषण, अन्याय, दमन और भेदभाव से मुक्ति नहीं मिल सकती।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इस वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था के अभियान को आगे बढ़ाया। इस अभियान ने करोड़ों किसानों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं, लेखकों और नौजवानों को अपने आगोश में ले लिया। इस प्रकार पूरे भारत में वैज्ञानिक समाजवाद क्रांति और कम्युनिस्ट पार्टी की बयार बहने लगी। समाज और देश का बड़ा हिस्सा गीत-संगीत, फिल्में, लाल रंग की विचारधारा में रंग गई।
दुनिया और देश में छायी समाजवादी विचारधारा से, हमारे देश के दूसरे दल, नेता और व्यक्ति भी अछूते नहीं रहे। कांग्रेस में राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, नेहरू और बाद में कपूर्री ठाकुर, लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने भी समाजवादी विचारों को आगे बढ़ाया और समाजवादी पार्टी की स्थापना की।
जयप्रकाश नारायण ने इमरजेंसी के आंदोलन में संपूर्ण क्रांति यानी टोटल रिवोल्यूशन की बात की, लोहिया ने सप्त क्रांति की बात की थी। इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान की उद्देशिका में समाजवादी शब्द को शामिल किया। इस प्रकार कई नेता और बहुत सारे छात्र संगठन समाजवादी रंग में रंग गए। उन्होंने समाजवादी विचारधारा और समाजवादी समाज को आगे बढ़ाने और बनाने के लिए काम किया। मगर उनका समाजवाद वह काम नहीं कर पाया जो रुस चीन और दूसरे समाजवादी मुल्कों ने कर दिखाया था।
आज हम देख रहे हैं कि जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, कपूर्री ठाकुर, इंदिरा गांधी और मुलायम सिंह यादव का समाजवाद उस रंग में नहीं रंग पाया जिसकी जरूरत थी। समाजवादी पार्टी भी बस नाम की पार्टी रह गई है।