हिन्दुस्तान मेल, भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस सोशल मीडिया को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। विपक्षी दल पर हमला करने और अपनी पार्टी की नीतियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए सोशल मीडिया बड़ा माध्यम है। इस चुनाव में वोटर और टारगेटेड ग्रुप्स पर पकड़ मजबूत बनाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने सोशल मीडिया की टीम को खासी ट्रेनिंग दी है। यही नहीं, दोनों ही दलों के राष्ट्रीय स्तर के नेता मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार निगरानी बनाए हुए हैं। विपक्षी दलों पर हमला करने के लिए पार्टी के सोशल मीडिया अकाउंट के बजाय थर्ड पार्टी अकाउंट का इस्तेमाल किया जा रहा है। सोशल मीडिया की टीम में अलग-अलग थीम पर बने पेज और अकाउंट्स से विरोधियों पर हमले किए जा रहे हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तत्कालीन सीएम बसवराज बोम्मई की फोटो लगाकर पेटीएम की तरह स्कैनर जारी कर बीजेपी सरकार पर करप्शन के मुद्दे पर सीधा हमला बोला था। यह कैम्पेन कर्नाटक में प्रभावी रहा। इसी तरह का पोस्टर कैम्पेन एमपी में भी चलाने की तैयारी चल रही थी कि उसके पहले ही 23 जून को भोपाल में कमलनाथ के खिलाफ ही पोस्टर्स लग गए। इन पोस्टर्स को लेकर जमकर राजनीति हुई, लेकिन बीजेपी ने खुलकर इन पोस्टर्स की जिम्मेदारी नहीं ली, बल्कि कांग्रेस की नीतियों से नाराज लोगों द्वारा पोस्टर लगाने की बात कही। कमलनाथ के खिलाफ पोस्टर लगने के बाद भोपाल से लेकर प्रदेश के दूसरे जिलों में कमलनाथ और सीएम शिवराज के खिलाफ पोस्टर लगाए गए। पोस्टर्स के जरिए एक दूसरे पर सीधे हमले किए गए, पर बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने इनकी सीधी जिम्मेदारी नहीं ली। आने वाले दिनों में पोस्टर्स की पॉलिटिक्स और ज्यादा तेज होगी।
जानिए कांग्रेस की क्या है रणनीति
कांग्रेस के इन्फॉर्मेशन, कम्युनिकेशन और सोशल मीडिया डिपार्टमेंट के हेड जयराम रमेश ने मप्र सहित इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव वाले राज्यों के सोशल मीडिया टीम की बैठक की। इस बैठक में यह तय हुआ कि आक्रामक रूप से सोशल मीडिया के जरिए कंटेंट शेयर किया जाए। इनमें क्षेत्रीय भाषाओं में बने गीत, लोकगीतों के साथ शॉर्ट वीडियो शेयर किए जाएं। इसके बाद से ही कांग्रेस के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगातार रैप सॉन्ग, लोकगीत, आल्हा की तर्ज पर बने वीडियोज के जरिए शिवराज सरकार पर हमले बोले जा रहे हैं।
इस प्रकार के अकाउंट्स
के जरिए हो रहे हमले
एमपी एक्सप्रेस- फेसबुक पर बने इस पेज पर ग्राफिक्स और फोटोज के जरिए शिवराज सरकार पर हमले किए जा रहे हैं। अखबारों में आने वाली खबरों के जरिए इस पेज पर बीजेपी की नीतियों को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है। इस पेज पर करीब 11 हजार फॉलोअर्स हैं। मप्र सीएम रिपोर्ट कार्ड- फेसबुक पर बने इस पेज पर करीब एक मिलियन फॉलोअर्स हैं। इस पेज के जरिए मप्र की शिवराज सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं के फोटो, वीडियो शेयर किए जा रहे हैं। इस पेज पर पब्लिक के फीडबैक के वीडियो भी शेयर किए जा रहे हैं। इस पेज का संचालन इंडिपेंडेंट ग्रुप्स द्वारा गुड गवर्नेंस के लिए किया जा रहा है। कांग्रेसमुक्त मध्यप्रदेश- इस फेसबुक पेज पर करीब 3 लाख 46 हजार फॉलोअर्स हैं।
मध्य प्रदेश
उम्र 70 साल, नाम गोपाल भार्गव, फिटनेस देख युवा भी हैरान
भोपाल। अपने सहज और सरल स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के सबसे वरिष्ठ और ‘अजेय’ विधायक और कैबिनेट मंत्री गोपाल भार्गव विपरीत परिस्थिति और कठिन समय में ‘अंगद’ की तरह ‘अटल’ रहकर राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। सागर जिले की रहली विधानसभा सीट से लगातार आठ बार से विधायक भार्गव ने एक बार फिर अपनी फिटनेस दिखाकर जहां राजनीति में उम्र को लेकर कटाक्ष करने वाले विरोधियों को करारा जवाब दे दिया है, वहीं जिम में उनको देख रहे युवाओं को हैरत में भी डाल दिया। 70 वर्षीय गोपाल भार्गव का हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वे एक जिम में मुग्दर घुमाते नजर आ रहे हैं।
गौरतलब है कि कैबिनेट मंत्री भार्गव गढ़ाकोटा स्थित नगर परिषद द्वारा स्थापित जिम में पहुंचे थे, जहां उन्होंने जिम में रखे मुग्दरों को पहलवानों की तरह उठाकर अपने दोनों हाथों से ऐसा घुमाया कि वहां मौजूद युवा भी हैरान रह गए। जब कोई मौका आता है, तो भार्गव अपना हुनर दिखाने से नहीं चूकते। वे बहुत अच्छे तैराक, तलवारबाज हैं, वहीं पहलवानी में लोगों को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर चुके हैं।
विरोधियों को करारा जवाब, आठ बार के इकलौते विधायक हैं भार्गव – दरअसल, पिछले कुछ समय से भाजपा में एज फैक्टर को लेकर उनके विधानसभा चुनाव लड़ने पर संदेह जताया जा रहा है। इसके बाद गोपाल भार्गव ने अखाड़े में पहलवानी के दौरान घुमाए जाने वाले मुग्दरों का प्रदर्शन कर उम्र को लेकर सवाल उठा रहे विरोधियों को करारा जवाब दिया है। भार्गव ने मुग्दर का प्रदर्शन कर बता दिया है कि राजनीतिक दांव-पेंच के अलावा वह शारीरिक रूप से भी विरोधियों को धोबीपछाड़ देने में सक्षम हैं। भार्गव वर्तमान में प्रदेश सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री हैं। वह लगातार 8 बार से विधायक हैं और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं।
ज्योतिषी ने भार्गव को तीन चुनाव और लड़ने का बताया था भविष्य – गौरतलब है कि पिछले दिनों क्षेत्र में एक लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान भी गोपाल भार्गव ने मंच से जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि उनके गुरु का आदेश है कि वह तीन विधानसभा चुनाव और लड़ें। फिलहाल भार्गव का मुग्दर घुमाने का यह वीडियो इंटरनेट मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है।
तलवारबाजी का करतब भी दिखा चुके थे मंत्री – पिछले दिनों मंत्री भार्गव का एक और वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह अपने हाथों में तलवार लेकर किसी सिद्धहस्त तलवारबाज की तरह घुमाते नजर आ रहे थे। तब भी उनके फिटनेस और जनता से उनका सहज जुड़ाव सामने आया था।
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नदी ने खुद रास्ता बदला, अतिक्रमण नहीं : सरकारब्लैक बेसाल्ट नदियां रास्ते नहीं बदलतीं : एनजीटी
हिन्दुस्तान मेल, भोपाल
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बेतवा की सबसे प्रमुख सहायक नदी कलियासोत के किनारों पर अतिक्रमण के मामले में राज्य सरकार और नगर निगम के रवैये पर सख्त नाराजगी जताई है। सुनवाई के दौरान नगरीय प्रशासन विभाग के अफसरों ने आदेश का पालन नहीं करने के पीछे तर्क दिया कि नदी किनारे लोगों ने अतिक्रमण नहीं किया है, बल्कि नदी ने ही अपना रास्ता बदल लिया है, इस कारण ऐसी स्थिति बन रही है।
जस्टिस की जूरी ने अफसरों के इस जवाब पर लताड़ लगाते हुए कहा कि हमें बेवकूफ मत बनाइए, ब्लैक बेसाल्ट के किनारों वाली नदियां कभी अपने रास्ते नहीं बदलती हैं। नदियों के रास्ते बदलने के मामले मैदानी क्षेत्रों में सामने आते हैं, जबकि भोपाल ब्लैक बेसाल्ट रॉक वाला पठारी क्षेत्र है।
विकसित करना था ग्रीन बेल्ट- एनजीटी ने पांच साल पहले नदी की जमीन से अतिक्रमण हटाकर दोनों ओर 33-33 मीटर ग्रीन बेल्ट विकसित करने का आदेश दिया था। लेकिन, इस आदेश का पालन नहीं होने पर दायर एग्जीक्यूशन पिटीशन पर सुनवाई के दौरान एनजीटी ने राज्य शासन को कहा है कि एक माह के अंदर नदी के राजस्व नक्शे के हिसाब से सीमांकन कर नदी की बाउंड्री फिक्स की जाए। इसके बाद 31 दिसंबर तक सभी अतिक्रमणों को हटाने की कार्रवाई की जाए। हालांकि, आदेश अभी अपलोड नहीं हुआ है। संभवत: सोमवार तक आदेश जारी हो सकते हैं। एनजीटी ने 10 जनवरी 2024 तक राज्य सरकार से एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है।
हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद सरकार फिर रिपोर्ट देगी, कचरे से जहरीला हुआ पानी
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में दफन 350 मीट्रिक टन कचरे का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। भोपाल गैस त्रासदी का कचरा नष्ट करने के लिए केंद्र सरकार 129 करोड़ रुपए देगी। अब 27 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई में केंद्र सरकार को प्रगति की रिपोर्ट विधिवत हलफनामे के साथ पेश करना है। इस कचरे की वजह से फैक्टरी आसपास रहने वालों को 39 साल बाद भी परेशानी हो रही है।
एक रिपोर्ट में आसपास के इलाकों का भूमिगत जल जहरीला होने की बात भी सामने आ चुकी है। कचरे के निपटान से यहां रहने वाले लोगों को भी बड़ी राहत मिलेगी। कारखाने के नजदीक स्थित 15 नई कॉलोनियों के भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड और कैडमियम मिला था।
भूमिगत जल यहां हुआ प्रदूषित : ग्रीन पार्क कॉलोनी, संत कंवरराम नगर, चौकसे नगर, रंभा नगर, रिसालदार कॉलोनी, राजगृह कॉलोनी, फूटा मकबरा, एकता नगर, दुलीचंद का बाग, नया कबाड़खाना, इहले हदीस मस्जिद, सुंदर नगर, शाहीन नगर कॉलोनी, निशातपुरा, प्रताप नगर, लक्ष्मी नगर, चंदन नगर, छोला मंदिर, द्वारका नगर और कृष्णा नगर।
यहां लिमिट से ज्यादा मिला कैडमियम : रंभा नगर, रिसालदार कॉलोनी, फूटा मकबरा, एकता नगर, दुलीचंद का बाग, न्यू कबाड़खाना, इहले हदीस मस्जिद, सुंदर नगर, शाहीन नगर, निशातपुरा, प्रताप नगर, लक्ष्मी नगर, छोला मंदिर, द्वारका नगर के साथ ही कृष्णा नगर।
रिपोर्ट में हुआ खुलासा
यूनियन कार्बाइड कारखाना परिसर में जमीन में दफन जहरीले कचरे से क्षेत्र की 15 नई कॉलोनियों का भूजल (ग्राउंड वॉटर) दूषित हो गया है। यह खुलासा साल 2018 में सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईटीआरसी) लखनऊ की रिपोर्ट में हुआ था। टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च की टीम ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कार्बाइड कारखाना के नजदीक स्थित 20 नई कॉलोनियों से ग्राउंड वॉटर का सैंपल लिया था। इनमें से छह कॉलोनियों के ग्राउंड वॉटर में नाइट्रेट और क्लोराइड तय लिमिट से ज्यादा मिला है। रिपोर्ट के अनुसार रंभा नगर, रिसालदार कॉलोनी समेत 15 बस्तियों के लोग दूषित पानी पी रहे हैं। इन कॉलोनियों के रहवासियों के घर के 67 फीट से लेकर 1,689 फीट तक की गहराई वाले बोरवेल से पानी के सैंपल लिए गए थे। इन 20 सैंपल्स में से 15 में हैवी मैटल कैडमियम मिली थी, जबकि 13 सैंपल में लैड और 7 में निकिल मिला था। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पीने के पानी के मानकों के अनुसार एक लीटर पानी में अधिकतम 0.003 मिली ग्राम कैडमियम युक्त पानी का उपयोग पीने में किया जा सकता है, लेकिन 15 बस्तियों के पानी में कैडमियम की मात्रा 0.004 से 0.006 के बीच मिली थी। इसके अलावा, 6 कॉलोनियों के भूजल में नाइट्रेट और क्लोराइड ज्यादा मिला था।
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अब विधानसभा लड़ने का भी सपना
चुनाव जीतने में जुटी भाजपा के कार्यकर्ताओं को जाने क्यों लग रहा है कि उनकी उपयोगिता सम्मेलनों में भीड़ बढ़ाने और ज्ञान बांटने वाले भाईसाबों के बौद्धिक सुनने जितनी ही रह गई है। सम्मेलन चाहे भोपाल में हो, या किसी खास अवसर पर पीएम का या गृहमंत्री का आगमन हो, हर बार मंच पर खास चेहरों के लिए ही कुर्सियां आरक्षित रहती हैं। सम्मेलनों में जीत का मंत्र देने आए सारे नेता अपनी बात कह कर कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के बाद टाटा-बाय बाय करते हुए अगले सम्मेलन के लिए रवाना हो जाते हैं।
भाजपा के हर बड़े नेता ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी के घुंघरू बांध लिए हैं। वजह यह कि नेता आश्वस्त हैं कि फिर से सरकार बन रही है। भले ही मध्य प्रदेश में चुनाव की कमान अमित शाह के हाथों में हो, लेकिन उनके जिन विश्वस्तों नरेंद्र सिंह तोमर, भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव द्वारा रणनीति को अंजाम दिया जा रहा है, तो इन्हीं से अपनी निकटता के चलते दावेदारों को टिकट की मंजिल आसान लग रही है। गुजरात की तर्ज पर भले ही अमित शाह ने मप्र में नए चेहरों को उतारने के संकेत दे दिए हैं, ऐसे में इंदौर में पुरानों में से कितनों को टिकट मिलेगा तय नहीं है। अभी जो पार्टी पदाधिकारी या लाभ के अन्य पदों पर हैं, उन्हें चुनाव लड़ने का भी मौका मिल ही जाएगा, यह इन तमाम दावेदारों को भी आभास नहीं है, किंतु जिस तरह से ये सब वरिष्ठ नेताओं से निकटता के कारण यकायक सक्रिय हुए हैं, तो पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को एक बार फिर लगने लगा है कि उनकी उपयोगिता पार्टी में नेताओं की सभा में भीड़ बढ़ाने या भंडारे में साग-पूरी परोसने से अधिक नहीं है।
जिन कई नेताओं को पार्टी पहले ही विभिन्न पदों पर स्थापित कर चुकी है, उन सभी को लग रहा है विधानसभा चुनाव में उनसे उपयुक्त कोई और नहीं। महापौर, सांसद, नगर अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष, निगम अध्यक्ष, प्राधिकरण अध्यक्ष, युवा आयोग अध्यक्ष सभी ने चुनाव लड़ने के घुंघरू बांध लिए हैं। विकास प्राधिकरण अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा भी आशान्वित हैं कि देपालपुर से टिकट मिलेगा और जीत भी जाएंगे। गोलू शुक्ला को इंदौर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष का दायित्व देकर मुख्यमंत्री ने एक नंबर से उनकी दावेदारी पर विराम लगा दिया हो, किंतु गोलू को लग रहा है कि उपाध्यक्ष के साथ इस सीट से चुनाव क्यों नहीं लड़ सकते।
इंदौर महापौर की दौड़ में पराजित होने पर हताश डॉ. निशांत खरे को सीएम युवा आयोग अध्यक्ष बना कर प्रोत्साहित कर चुके हैं। आदिवासी क्षेत्र में सक्रिय डॉ. खरे को भी जाने कब से लग रहा है कि उनकी योग्यता का बेहतर उपयोग विधायक के रूप में हो सकता है। वे भी राऊ, महू या अन्य किसी भी सामान्य क्षेत्र से जीतने का विश्वास रख रहे हैं। भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे के समर्थकों को जाने क्यों लग रहा है, जैसे (स्व) उमेश शर्मा की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए अचानक उन्हें अध्यक्ष पद मिल गया था, वैसे ही पांच नंबर से टिकट भी मिल जाएगा। मुख्यमंत्री ने अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम का अध्यक्ष बना कर सावन सोनकर को भले ही उपकृत कर दिया हो, लेकिन ग्रामीण जिला अध्यक्ष डॉ. राजेश सोनकर की ही तरह उनकी भी इच्छा इस बार सांवेर से चुनाव लड़ने की है।
पार्टी ने इंदौर में भी विधायक मालिनी गौड़ को महापौर का चुनाव लड़वाया था, इसलिए अब महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी चार नंबर से विधायक का चुनाव लड़ने का सपना देख रहे हैं, तो गलत क्या है। अपने ‘एक साल बेमिसाल’ कार्यकाल को लेकर मीडिया से चर्चा में वो विधायक टिकट की दावेदारी जैसे प्रश्नों को तो टाल गए, लेकिन मजबूती से यह दावा जरूर किया कि मप्र में फिर से भाजपा की ही सरकार बनेगी। उनके अपने तर्क भी थे कि इस बार शासकीय कर्मचारियों, अधिकारियों में नाराजी नहीं है। सरकार ने लाड़ली बहनों के खातों में हर माह जो राशि डालना शुरू की है तो बड़े पैमाने पर यह वोटर भाजपा के साथ हो गया है। पिछले चुनाव में किसानों की नाराजी के चाहे जो कारण रहे हों, लेकिन केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं के साथ किसानों के हित में राज्य सरकार ने जितने निर्णय लिए हैं, उनसे किसानों का पार्टी के प्रति विश्वास और मजबूत हो गया है।
सांसद लालवानी क्यों चार नंबर से विधायक का चुनाव लड़ना चाहते हैं, इसका ठोस कारण तो उनके खास लोग भी नहीं बता सकते, लेकिन तय माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी इंदौर से किसी अन्य को मौका देगी, ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े, इससे पहले वे चार नंबर से विधायक का चुनाव लड़ने का मायाजाल बुन रहे हैं। इस क्षेत्र में सिंधी वोटर्स की अधिकता और वर्तमान विधायक परिवार और महापौर के बीच चलने वाली स्पर्धा में उन्हें निर्णय अपने पक्ष में होने की उम्मीद बनी हुई है। इस बार मालिनी गौड़ को टिकट नहीं मिला तो किसी अन्य को भी नहीं मिले, इसलिए गौड़ परिवार एकलव्य का नाम आगे बढ़ा रहा है लेकिन उनके विरुद्ध जिस तरह प्रकरण होते जा रहे हैं वह बाधा बन सकते हैं।
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