
इंदौर। कभी कम्प्यूटराइजेशन, कभी एकल खिड़की तो कभी फ्री होल्ड..। चर्चा और तैयारियां खूब होती हैं, फिर भी लीजधारकों की दिक्कतें दूर नहीं होतीं… अड़ंगा लगा ही रहता है। यही वजह है कि बड़ी तादात् में लीज प्रकरणों का नवीनीकरण नगर निगम नहीं कर पा रहा है। राजनीतिक दबाव के कारण दो एमआईसी सदस्यों के प्रकरण ही मंजूर हुए हैं, बाकी पट्टाधारकों के साथ क्षेत्र के पार्षद भी परेशान हैं, लेकिन प्रकरणों पर आयुक्त की साइन नहीं हो रही है। हालांकि अपर आयुक्त (राजस्व) के अनुसार नवीनीकरण हो रहे हैं, थोड़ा वक्त जरूर लग रहा है।
नगर निगम में लीज पर दी गई आवासीय-व्यावसायिक संपत्ति के नवीनीकरण, फ्रीहोल्ड और ट्रांसफर के नियमों को लेकर भी असमंजस की स्थिति है। इससे करीब 100 मामले लंबित हैं। शहर में महाराजा होलकर स्टेट, इंदौर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट, नगर सुधार न्यास और नगर निगम ने समय-समय पर जमीन, मकान, व्यावसायिक दुकानें लीज पर आवंटित की हैं। न्यू पलासिया, सुभाषनगर, परदेशीपुरा, धार कोठी, रतलाम कोठी, ओल्ड पलासिया, स्नेहलतागंज, मनोरमागंज जैसे इलाकों में हजारों संपत्ति लीज प्रॉपर्टी हैं।
ये संपत्तियां 1910 से 1935 के बीच लीज पर दी गई थीं। चूंकि अधिकांश क्षेत्र मध्यक्षेत्र का हिस्सा है, इसीलिए यहां प्रॉपर्टी की कीमतें भी बहुत ज्यादा हैं। चूंकि लीज प्रकरण 80 से 100 साल पुराने हैं। पहले 90 साल की लीज दी जाती थी। बाद में लीजधारक यदि किसी को संपत्ति बेचता है या हस्तांतरित करता है तो लीज घटकर 30 साल रह जाती है।
बड़ी कमाई हो सकती है
बताया जा रहा है कि नगर निगम की जितनी संपत्ति लीज पर है… यदि उसे फ्री होल्ड करके एकमुश्त राशि जमा करा ली जाए तो नगर निगम को अरबों रुपया मिल सकता है। इसे लेकर चर्चाएं जरूर चली थीं, लेकिन काम आगे बढ़ा नहीं।
लीज शुल्क बढ़ा दो
यह भी कहा जा रहा है कि नगर निगम कमाई बढ़ाने के लिए लीज शुल्क की दरें बढ़ा सकता है। हालांकि इससे लीज धारक भी सहमत हैं। उनकी मानें तो शुल्क से समस्या नहीं, लालफीताशाही से दिक्कत है, जिसकी वजह से काम कम, अड़ंगे ज्यादा आते हैं।