सूरज अपनी गरिमा छोड़ सकता है। चंद्रमा अपनी शीतलता का परित्याग कर सकता है। सागर अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर सकता है, पर रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को विश्व की कोई ताकत रोक नहीं सकती। यह एक साध्वी का संकल्प है, एक रामभक्त का ओज और मां भारती की आराधना में लीन एक तपस्विनी की हुंकार। अयोध्या में कारसेवकों पर उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव की सरकार ने गोलियां चलवाई थीं। पुलिस की बंदूकों ने जिन कारसेवकों का असमय प्राण हर लिए, उनके संकल्प एक-एक हिंदू के रग-रग में संचारित होते रहें, इसके लिए वो साध्वी दहाड़ रही थीं। एक-एक शब्द मानों युद्ध का निनाद था, हरेक भाव-भंगिमा मानों युग परिवर्तन का आह्वान और सामने रामभक्तों का जनसैलाब। वह स्थान देश की राजधानी दिल्ली का इंडिया गेट था, जहां श्रीराम कारसेवा समिति, हिंदू परिषद् और राम जन्मभूमि न्यास के बुलावे पर दुनिया के कोने-कोने से रामभक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा था। जिधर दृष्टि पड़े, रामभक्तों का तांता। मंच पर लगे माइक से जो आवाज रामभक्तों में जोश का संचार कर रही थी, वो आवाज थी- साध्वी ऋतंभरा की।
पंजाब के लुधियाना स्थित दोराहा में जन्मीं निशा ने महज 16 वर्ष की उम्र में भगवा चोला पहन लिया था। हरिद्वार के गुरु परमानंद गिरि ने नए उन्हें साध्वी जीवन का नया नाम दिया- ऋतंभरा। आज भी साध्वी ऋतंभरा की वाणी में ऐसा ओज है कि वो सुनने वालों में एक गजब सी कशिश पैदा कर देती है। तब ऋतंभरा युवावस्था में थीं। वो बोलतीं तो ऐसा लगता मानों युद्धभूमि में तलवारों की टंकार गूंज रही हो। उनके एक-एक शब्द संकल्पों की सिद्धि को प्रेरित करता और रामभक्तों में नए जज्बे का संचार कर देता। वो बेबाक थीं, कोई डर नहीं, कोई संशय नहीं, इसलिए दिल की बात बेझिझक उनकी जुबां पर आ जाती। दिल्ली की ही उस रैली में साध्वी ऋतंभरा ने मुलायमसिंह यादव को कातिल, हिजड़ा जैसे शब्दों से नवाजा तो राम मंदिर का विरोध करने वालों को कुत्ता तक कहा।
उन्होंने एक रामभक्त से अपनी बातचीत का जिक्र करते हुए कहती हैं- मैंने उससे कहा… तुम एक हिजड़े को मारने के लिए गोली बर्बाद करोगे? दरअसल, कारसेवकों की हत्या से दु:खी उस रामभक्त ने पास में बंदूक रखने की इच्छा साध्वी ऋतंभरा के सामने जताई थी, जिस पर साध्वी ने उसे समझाते हुए कहा कि राम के विरोधी नेताओं पर गोलियां चलाने की जरूरत नहीं है, उन्हें कुर्सी से हटा दो। वो मंच से कहती हैं- ये राम द्रोही नेताओं के प्राण इनकी कुर्सी में रहते हैं, इनकी कुर्सी छीन लो… ये अपने आप कुत्ते की मौत मर जाएंगे। इनको मारने के लिए किसी बम-बारूद, गोली की जरूरत नहीं है। इसी बेबाकी से साध्वी ऋतंभरा मंच से आवाज देतीं तो रामभक्तों का संकल्प और गहरा हो जाता। उनकी कविताएं देशप्रेमियों के दिलों को बखूबी सिंचित करतीं। साध्वी ऋतंभरा कहा करतीं- हो हिंदू हो या मुसलमान, जिसको इस देश से प्यार नहीं; तो फिर उसको इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं।
दरअसल, 1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद् ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण का आंदोलन छेड़ा तो इससे देशभर के साधु-संत जुड़ने लगे। एक ओजस्वी वक्ता के रूप में साध्वी ऋतंभरा राम मंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा बन गईं। इससे पहले साध्वी ऋतंभरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की महिला संगठन राष्ट्रीय सेविका समिति से भी जुड़ी थीं, लेकिन वीएचपी के कार्यक्रमों के जरिए उन्होंने हिंदू जागृति अभियान का कमान संभाल लिया। 1990 में जब अयोध्या आंदोलन ने जोर पकड़ लिया तो साध्वी ऋतंभरा घर-घर जाने लगीं। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया तो वो अयोध्या में ही थीं, इसीलिए लिब्राहन आयोग ने बाबरी विध्वंस के लिए जिन 68 आरोपियों की सूची बनाई, उसमें साध्वी ऋतंभरा का भी नाम था। आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा कि साध्वी ऋतंभरा ने तीखे भाषणों के जरिये मस्जिद विध्वंस का माहौल बनाया था।
अयोध्या में राम जन्मभूमि से बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के तीन साल ही हुए थे कि मध्यप्रदेश में साध्वी ऋतंभरा को गिरफ्तार कर लिया गया। तब एमपी में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे दिग्विजय सिंह। साध्वी ऋतंभरा इंदौर की एक जनसभा में ईसाई मिशनरियों की तरफ से हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाए जाने पर अपनी चिंता जाहिर की। तब सीएम दिग्विजय सिंह के आदेश पर मध्यप्रदेश की पुलिस ने साध्वी ऋतंभरा को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। हाईकोर्ट से जमानत के बाद साध्वी ऋतंभरा 11 दिन बाद जेल से निकल पाईं। उसके बाद वो धीरे-धीरे थोड़ा गुप्त रहने लगीं।
बाद में साध्वी ऋतंभरा ने उत्तरप्रदेश के वृंदावन में वात्सल्य ग्राम की स्थापना की। उन्होंने मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर और हिमाचल प्रदेश के सोलन में भी वात्सल्य ग्राम बनाए। बाद में इसकी शाखाओं का विस्तार होता रहा। वात्सल्य ग्राम के बच्चे उन्हें दीदी मां कहकर पुकारते हैं। दीदी मां को पुस्तकें पढ़ने का शौका है। उन्हीं दीदी मां के वृंदावन स्थित वात्सल्य ग्राम में देश का पहला बालिका सैनिक स्कूल भी खुला है। साध्वी ऋतंभरा के प्रवचन आज भी लोगों को आह्लादित करते हैं। उनके प्रवचनों को पसंद करने वालों की संख्या करोड़ों में हैं। साध्वी ऋतंभरा रामकथा करती हैं और श्रीमद् भागवत कथा भी। वो आज भी बेधड़क, बेहिचक अपने मन की बात करती हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो मीडिया ने साध्वी ऋतंभरा का विचार जानना चाहा। एक टीवी इंटरव्यू में साध्वी ऋतंभरा ने बिना लाग-लपेट कह डाला- राम रहेंगे टाट में, भक्त रहेंगे ठाठ से… ऐसा नहीं होना चाहिए। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंदिर नहीं बनेगा तो फिर कब बनेगा?
ये वही साध्वी ऋतंभरा थीं, जिन्होंने महज छह वर्ष पहले 14 अप्रैल, 2008 को नरेंद्र मोदी को राष्ट्रनायक बताया था। उन्होंने अहमदाबाद के टैगोर हॉल में साध्वी ऋतंभरा ने कहा था- मैं आज गुजरात के लोकनायक की पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में नहीं आई हूं, मैं राष्ट्रनायक के रूप में नरेंद्र भाई मोदी को देखती हूं। वह अवसर था गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की लिखी पुस्तक ‘ज्योतिपुंज’ को लोकार्पण का। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों पर लिखी गई पुस्तक के लोकार्पण समारोह में साध्वी ऋतंभरा ने भविष्य के नरेंद्र मोदी का दीदार किया था, वो सच था। नरेंद्र मोदी आज करोड़ों लोगों के लिए राष्ट्रनायक ही तो हैं। 5 अगस्त, 2019 को राम मंदिर के भूमिपूजन के लिए अयोध्या पहुंचे उस राष्ट्रनायक नरेंद्र मोदी ने रामलला को दंडवत प्रणाम किया तो साध्वी ऋतंभरा गद्गद् हो गईं। आज वो हर इंटरव्यू में उस दृश्य का बखान करती हैं और कहती हैं- यह एकजुट हिंदुओं का दृढ़संकल्प का परिणाम है। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का पहला निमंत्रण पत्र साध्वी ऋतंभरा को ही मिला। (ये लेखक के निजी विचार हैं)